Poem Poverty And Wealth
कविता गरीबी और धन।
'बेवफ़ा हूँ' ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
कहते हैं कि ग़रीबी को एक श्राप माना गया है और इस श्राप से निजात पाने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है जो कि काम करने से आता है और काम तो हमारे देश में इतना है कि बेरोज़गारी से लोग भूख़े मर रहे हैं। यहाँ जितना कि मैं जानता हूँ और शायद आप लोग भी जानते होंगे कि कौन किसकी कितनी मदद करता है,लोगों ने तो अब ये भी कहना शुरू कर दिया है कि भलाई करने का ज़माना नहीं है आज। अगर आज हम किसी की मदद झरना चाहें तो वो हज़ार बार सोचेगा कि उसकी मदद करने के पीछे हमारा क्या मक़सद हो सकता है। दोस्तों जहाँ भी आपको कोई ग़रीब बुज़ुर्ग व्यक्ति दिखता और आपको ये लगे कि उसे मदद की ज़रूरत है तो दोस्तों उसकी मदद ज़रूर करें बिना किसी मक़सद के।
Poem Poverty And Wealth
कविता गरीबी और धन।
भूख और गरीबी।
मुझे कौन देगा ख़ाना मुझे कौन देगा पानी यार,
क्या मुझ जैसी ही कटेगी मेरे बच्चों की जवानी यार,
ना जाना ना आना हम घरों में ही हैं बंद,
ये साफ़ - साफ़ है मेरी मौत की निशानी यार।
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कमाऊंगा क्या मैं खाऊंगा क्या,
बच्चों की भूख़ मिटाऊंगा क्या,
भूख़ा प्यासा परिवार बैठा है,
तुम्हे लगता है मैं बच जाऊंगा क्या,
दो वक़्त की रोटी मिलनी है मुश्क़िल,
तुम घर में हो खाते मटन बिरयानी यार,
मुझे कौन देगा ख़ाना मुझे कौन देगा पानी यार,
क्या मुझ जैसी ही कटेगी मेरे बच्चों की जवानी यार।
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ना घर में है चावल ना दूध ही है,
तेरे कोश में पैसा मौजूद ही है,
मैं चारों तरफ़ जब देखूं जहां को,
मुझे लगता है ये तो बारूद ही है,
मैं सोच के सहारे हर दिन को निकालूं,
पर मुश्क़िल हो रही हैं अब रातें बितानी यार,
मुझे कौन देगा ख़ाना मुझे कौन देगा पानी यार,
क्या मुझ जैसी ही कटेगी मेरे बच्चों की जवानी यार।
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मेरे पास दवाई का पैसा ना है,
हां थोड़ा बहुत है तेरे जैसा ना है,
कुछ यार काम आए वफ़ादार जो थे,
मुझे हाथ से खिलाये कोई ऐसा ना है,
मैं समझ चुका हूँ शरारत है किसकी,
इसमें मिली है सियासत की शैतानी यार,
मुझे कौन देगा ख़ाना मुझे कौन देगा पानी यार,
क्या मुझ जैसी ही कटेगी मेरे बच्चों की जवानी यार।
Poem Poverty And Wealth
कविता गरीबी और धन।
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