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झूठ पर हिंदी कविता।

Jhooth Par Hindi Kavita

झूठ पर हिंदी कविता





'बेवफ़ा हूँ' ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

दोस्तों कहते हैं कि दोस्ती और दुश्मनी दोनों निभानी बहुत मुश्क़िल हैं। कई बार तो दोस्ती और दुश्मनी में ऐसी-ऐसी लड़ाइयाँ हो जाती हैं जिनकी सज़ा बेक़सूर लोगों को भुगतनी पड़ती है और यहाँ तक कि उनकी पूरी ज़िन्दगी जेल में ही निकल जाती है।  हमारे देश में तो ऐसा चलन है कि झूठा व्यक्ति सबूतों के अभाव में छूट जाता है और उसकी जगह किसी और व्यक्ति सज़ा हो जाती है। देश में भ्रष्टाचार मानों ऐसे बढ़ चुका है कि जो व्यक्ति सत्ता में होता हैं वो अपनी ताक़त का पूरा - पूरा और सही तरीक़े से इस्तेमाल करता है , मेरी इस बात का तो आप मतलब समझ ही गए होंगे। आओ दोस्तों देश में से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए आगे आएं और बेक़सूरों सज़ा होने से रोक सकें। 


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झूठ पर हिंदी कविता

जेलों में बंद बहुत बेक़सूर बैठे हैं


जेलों में बंद बहुत बेक़सूर बैठे हैं,

कुछ लोग सच्चाई से बहुत दूर बैठे हैं। 

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उनसे कैसे कहूँ सबूतों की हक़ीक़त मैं,

लेकर दिल में जो कुर्सी का ग़ुरूर बैठे हैं। 

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मिटा दूंगा ऐसी अदालतों , जजों ,वक़ीलों को,

बेईमानी की दावत को जो करके क़बूल बैठे हैं। 

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गीता पे हाथ रखकर सब सच ही कहते हैं,

कई निर्दोषों को फांसी भी हुई ये भूल बैठे हैं। 

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जीने - मरने का जो वादा करते थे आगे बढ़कर,

किनारा करके मुझसे आज कोसों दूर बैठे हैं। 

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जिनको आड़ मिल गई इज़्ज़तों से खेलने की,

वही दरिंदे अब खोलकर स्कूल बैठे हैं।

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