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भ्रष्टाचार में भारत का स्थान कविता हिंदी में।

Bhrashtachar Par Kavita

Hindi Mein

भ्रष्टाचार पर कविता हिंदी में


'बेवफ़ा हूँ' ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

आज हमारे देश में भ्रष्टाचार इतना ज़्यादा बढ़ गया हैं कि लोगों को सही इलाज नहीं मिल रहा , सही नौक़री नहीं मिल रही और तो और देश में धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों की तादात दिनों - दिन बढ़ती जा रही है जिसका बोझ आम जनता पर पड़ रहा है। हमारी सरकार जो भी फैंसले लेती है वो ज़्यादातर आम जनता के पक्ष में काम और उद्योगपतियों के पक्ष में ज़्यादा होते हैं , जिसका नुक़सान आम जनता भर्ती है। जब तक हमारे देश में सरदार वल्ल्भ भाई पटेल जी जैसे नेता थे तब तक देश में ख़ुशहाली ही ख़ुशहाली थी और हमारे देश पर कभी कोई आर्थिक तंगी नहीं आ। मगर आज अगर भारत को देखा जाए तो कौनसी ऐसी परेशानी है जिससे हमारे देश की जनता जूझ नहीं रही, बेरोज़गारी, आर्थिक तंगी, ऐसे बहुत से भयानक रोग हैं जो भारत देश को लग चुके हैं। इस देश को किसी समय सोने की चिड़िया कहा जाता था और आज जो हमारे देश का हाल है आप सब देख ही रहे हैं। आइये इस कविता को पढ़ते हैं जिसका नाम है 'भ्रष्टाचार में भारत का स्थान कविता हिंदी में'


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भ्रष्टाचार पर कविता हिंदी में

भ्रष्टाचार में भारत का स्थान कविता हिंदी में


भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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आज़ादी के बाद किसी को डर ही नहीं रहा,

चोरों , ठगों को तो इस क़दर ही नहीं रहा,

कि कर ग़ुनाह जेल की हवा खानी पड़ेगी फ़िर से,

भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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नोट - नोट कर सफ़ेद पैसा काला दिया बना,

बूंद - बूंद कर पाप का घड़ा भरने का डर ना,

विदेशों की सरकार भी हिलानी पड़ेगी फ़िर से,

भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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शहीदों के शहीदी दिवस पर फ़ूल चढ़ाते हैं,

हाथ जोड़ और टेक के माथा भूल ही जाते हैं,

जो क़सम शुरू में खाई याद दिलानी पड़ेगी फ़िर से,

भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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मेरी कही इस बात का कोई असर नहीं है होना,

जनता को बहुमत देकर मतहीन पड़ेगा होना,

आ भगत सिंह को समस्या ये सुलझानी पड़ेगी फ़िर से,

भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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अब कहाँ गया है वो अपना भारत प्यारा - प्यारा,

जिसे थोड़ा - थोड़ा कर लूटा ले गए कितना सारा,

एकत्रित होकर सोच से सोच मिलनी पड़ेगी फ़िर से,

भगत सिंह के जैसी क्रान्ति लानी पड़ेगी फ़िर से,

अंधी , गूंगी , बहरी सरकार जगानी पड़ेगी फ़िर से। 

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Bhrashtachar Par Kavita Hindi Mein

भ्रष्टाचार पर कविता हिंदी में


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