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भ्रष्टाचार पर कविता शायरी।

 Bhrashtachar Par Kavita Shayari

 भ्रष्टाचार पर कविता शायरी






'बेवफ़ा हूँ' ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

काला धन वापिस लाएंगे, ये शब्द किसने कहे थे ये बात देश का हर नागरिक, बच्चा, बुज़ुर्ग, नौजवान भाई - बहन जानते हैं। लेकिन ये सिर्फ़ एक चाल थी लोगों को अपनी तरफ़ खींचने के लिए, जो कि हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी है। आने वाले चुनाव में जीतने के लिए आज भी सरकार बहुत से झूठे कथन कह रही है। मेरे प्यारे देश-वासियों मुझे तो इतना पता है कि सरकार कोई भी आये आम जनता को बिल्कुल भी कष्ट नहीं होना चाहिए जबकि होता हर बार इसके विपरीत ही है। जब कभी भी सरकार बदली है सबसे ज़्यादा मुश्क़िलों का सामना आम आदमी को ही करना पड़ा है, क्यूंकि आम आदमी के पास कमाई करने का बहुत कम ज़रिया है। सरकार जो नई - नई योजनाएँ भी लाती है वो भी आम आदमी को कहाँ मिलती है, चाहे वो मुद्रा लोन हो या फ़िर कोई और योजना। असल बात तो ये है कि हम लोग इतने ज़्यादा परेशान हो चुके हैं कि हम वोट बिना सोचे समझे ही डाल आते हैं, क्यूंकि हमारे दिमाग में ये होता है कि सरकार कोई भी आये ग़रीब व्यक्ति का कहाँ सोचेगी। लेक़िन हमने ऐसा नहीं करना है, पूरी सोच समझ से वोट देना है। ये कविता आपको बहुत कुछ सिखा देगी। कविता के माध्यम से हमारा उद्देश्य किसी को नीचे दिखाना नहीं है बल्कि लोगों को जागरूक करना है और सबको सही रह पर चलने की शिक्षा देना है।



Bhrashtachar Par Kavita Shayari

 भ्रष्टाचार पर कविता शायरी

अंधाधुन लुटाया है


लोगों ने फ़िर से विश्वास,
उन्हीं पे दिखलाया है,
जिनकी करतूतों ने देश को,
अंधाधुन लुटाया है,
मैं यूं ही नहीं बोल रहा,
हाथ सबूत कोई आया है,
जिनकी करतूतों ने देश को,
अंधाधुन लुटाया है। 

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काला हो या गोरा धन,
ये तो बैठ गए अब बन,
पांच साल के लिए तमाशा,
देखेंगे अब सारे हम,
क्यूंकि हमीं ने ही इनको,
भारी मत से जिताया है ,
जिनकी करतूतों ने देश को ,
अंधाधुन लुटाया है। 

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ऐसी - ऐसी बातें यार,
लूट रही है ख़ुद सरकार,
देना मत दिलासे झूठे,
एक यही करदो उपकार,
कई बार तो आकर मेरे,
कानों में बतलाया है,
जिनकी करतूतों ने देश को,
अंधाधुन लुटाया है। 

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जनता की कमज़ोरी हो,
ऊपर से सीना ज़ोरी हो,
महीने की तनख़्वाह भी लें,
नोटों से भरी तिज़ोरी हो,
कोई लूटता कोई लुटाता है,
कैसी प्रभु की माया है,
जिनकी करतूतों ने देश को,
अंधाधुन लुटाया है। 

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जो भी होगा देखेंगे हम,
आओ बढ़ाएँ आगे क़दम,
मैं तो सच्चाई ही लिखूंगा,
रोक ले जिसमें होगा दम,
कलम मेरी को चक्कर इनका,
आज समझ में आया है,
जिनकी करतूतों ने देश को,
अंधाधुन लुटाया है। 

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Bhrashtachar Par Kavita Shayari

 भ्रष्टाचार पर कविता शायरी


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